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महाराष्ट्र में हिंदी पर बहस क्यों छिड़ी है? | जानिए पूरा मामला विस्तार से

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने एक आदेश जारी किया था जिसमें राज्य बोर्ड के सभी मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया गया था। यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) के आधार पर लिया गया था।

हालांकि, इस आदेश को कुछ ही दिनों में सरकार ने वापस ले लिया, जिसके बाद राज्य में भाषा को लेकर बहस छिड़ गई है। अब इस पूरे मुद्दे को समझने के लिए सरकार ने एक विशेष समिति का गठन किया है, जिसकी अध्यक्षता करेंगे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. नरेंद्र जाधव

क्या था सरकार का आदेश?

16 अप्रैल 2024 को महाराष्ट्र सरकार ने एक सरकारी आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था:

“राज्य के सभी मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में कक्षा 1 से कक्षा 5 तक हिंदी तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य होगी। अभी तक तीसरी भाषा केवल कक्षा 5 में शुरू की जाती थी।”

सरकार का कहना था कि यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के अनुरूप है और राज्य शिक्षा रूपरेखा 2024 में इसका उल्लेख है।

विरोध क्यों हुआ?

सरकार के इस फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों, शिक्षा विशेषज्ञों और कई माता-पिता ने विरोध दर्ज कराया। विरोध के मुख्य कारण:

  1. भाषाई विविधता का दबाव: महाराष्ट्र पहले से ही एक बहुभाषी राज्य है। मराठी, अंग्रेज़ी और उर्दू जैसे कई भाषाएं पहले से स्कूली शिक्षा में पढ़ाई जाती हैं। ऐसे में हिंदी को और जोड़ना छात्रों पर अतिरिक्त बोझ के रूप में देखा जा रहा है।
  2. संस्कृति और पहचान का सवाल: कुछ संगठनों ने इसे मराठी भाषा और संस्कृति की पहचान पर हमला बताया और आशंका जताई कि हिंदी को “थोपा” जा रहा है।
  3. सांस्कृतिक राजनीतिकरण का आरोप: कुछ विपक्षी नेताओं ने इसे ‘हिंदी थोपने’ की कोशिश कहा, और इसे भाजपा के हिंदी प्रचार के एजेंडे से जोड़कर देखा।

NEP 2020 में क्या कहा गया है?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि:

  • स्कूलों में तीन-भाषा फार्मूला अपनाया जाएगा।
  • एक भाषा स्थानीय या मातृभाषा होगी।
  • दूसरी और तीसरी भाषाओं का चुनाव राज्य और स्कूल कर सकते हैं, लेकिन छात्रों को कम से कम दो भारतीय भाषाओं से परिचित कराया जाएगा।

NEP का उद्देश्य बहुभाषिकता को बढ़ावा देना है, न कि किसी एक भाषा को अनिवार्य करना।

अब आगे क्या होगा?

अब सरकार ने अपने फैसले को वापस लेकर समीक्षा के लिए डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है, जो यह जांचेगी कि:

  • क्या तीन-भाषा नीति को लागू करना व्यवहारिक है?
  • छात्रों, स्कूलों और अभिभावकों पर इसका क्या असर पड़ेगा?
  • किस उम्र या कक्षा से तीसरी भाषा शुरू होनी चाहिए?

समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार भविष्य में निर्णय लेगी।

बहस भाषा की नहीं, प्राथमिकता और पहचान की है

महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर चल रही यह बहस केवल एक विषय जोड़ने की नहीं है — यह एक गहरी चर्चा है शैक्षणिक बोझ, सांस्कृतिक विविधता और नीति के क्रियान्वयन को लेकर।

सरकार के लिए यह जरूरी है कि कोई भी बदलाव करते वक्त जनता की भाषा, भावना और ज़रूरतों को बराबरी से महत्व दे।