बिहार: एक समय था जब मढ़ौरा का नाम लेते ही लोगों के ज़हन में मॉर्टन चॉकलेट की मिठास और मढ़ौरा चीनी मिल की चमकदार शक्कर का स्वाद ताज़ा हो जाता था। लेकिन आज वही इलाका खंडहर में तब्दील हो चुका है, और जनता अपने नेताओं से सवाल कर रही है कि आखिर बिहार की औद्योगिक पहचान क्यों मिटा दी गई।
मढ़ौरा की मॉर्टन चॉकलेट और चीनी मिल बिहार की औद्योगिक शान मानी जाती थीं। यह कस्बा सारण जिला मुख्यालय छपरा से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एक दौर में यहां की 80 प्रतिशत आबादी मिलों पर निर्भर थी। मढ़ौरा की चीनी मिल 1904 में स्थापित हुई थी और अपने सुनहरे दौर में भारत की दूसरी सबसे बड़ी शक्कर उत्पादन इकाई थी।
1947-48 में ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन ने इस मिल को अपने अधीन कर लिया, लेकिन 1990 के दशक में कुप्रबंधन और सरकारी लापरवाही के चलते मिल बंद हो गई। इसके बाद धीरे-धीरे मिल के मशीनें कबाड़ में बिक गईं और फैक्ट्री पूरी तरह खंडहर में बदल गई।

मॉर्टन मिल की भी कहानी कुछ ऐसी ही रही। कभी देशभर में मशहूर मॉर्टन टॉफी और चॉकलेट अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। अंग्रेजों की किताबों में भी मढ़ौरा का जिक्र ‘इंडस्ट्रियल टाउन’ के रूप में किया गया था।
स्थानीय नेताओं, जैसे कि लालू प्रसाद यादव और वर्तमान सांसद राजीव प्रताप रूडी, दोनों ने अलग-अलग दौर में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन इन फैक्ट्रियों को फिर से चालू कराने की कोई ठोस पहल नहीं हुई। यहां तक कि प्रधानमंत्री के वादों के बावजूद भी मढ़ौरा की मिलें अब तक बंद पड़ी हैं।
पूर्व विधायक चोकर बाबा ने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन उन्हें भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। आज जनता एक बार फिर चुनाव के समय इन सवालों को लेकर सड़कों पर खड़ी है, जबकि नेता इनसे किनारा कर रहे हैं।
कभी बिहार के उद्योग की पहचान रहा मढ़ौरा, आज सिर्फ टूटी दीवारों और जंग लगे बोर्डों के सहारे अपनी कहानी सुना रहा है।