नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत केंद्र सरकार ने पूरे देश के लिए यह स्पष्ट कर दिया है कि अब पहली कक्षा में दाखिला लेने के लिए बच्चे की न्यूनतम उम्र 6 वर्ष होनी चाहिए। यह नियम न केवल सरकारी स्कूलों, बल्कि सभी प्राइवेट स्कूलों पर भी लागू होगा।
क्या है नई उम्र सीमा?
- बच्चे की उम्र 1 अप्रैल 2025 तक 6 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए।
- यदि कोई बच्चा 30 सितंबर 2025 तक 6 साल का हो जाता है, तो उसे भी पहली कक्षा में दाखिले की अनुमति दी जाएगी।
NEP 2020 के तहत क्यों लिया गया यह निर्णय?
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, बच्चों की मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक विकास की दृष्टि से 6 साल की उम्र में ही औपचारिक शिक्षा की शुरुआत होनी चाहिए। इससे बच्चे अधिक समझदार, केंद्रित और पढ़ाई के लिए तैयार रहते हैं।
अभिभावकों के लिए जरूरी बातें
- बच्चे का सही जन्म प्रमाणपत्र (Birth Certificate) बनवाएं।
- अगर जन्मतिथि में कोई त्रुटि है, तो समय रहते उसे सरकारी दस्तावेजों में ठीक करवा लें।
- किसी भी स्कूल में एडमिशन के लिए जन्मतिथि ही सबसे महत्वपूर्ण आधार होती है।
पूर्व-प्राथमिक से प्रोन्नति (Promotion) पर क्या होगा?
- यदि बच्चा प्री-प्राइमरी (Pre-Primary) क्लास पूरी कर चुका है लेकिन 1 अप्रैल 2025 तक 6 साल का नहीं हुआ है — तो 30 सितंबर तक 6 साल पूरे होने की स्थिति में उसे पहली कक्षा में प्रमोट किया जा सकता है।
पहले क्या था नियम?
2024-25 शैक्षणिक सत्र में कई राज्य 5 साल 6 महीने की उम्र में भी एडमिशन ले रहे थे। लेकिन अब केंद्र द्वारा स्पष्ट दिशा-निर्देश के बाद सभी राज्यों में एक समान नियम लागू होगा।
सही उम्र में स्कूल क्यों ज़रूरी है?
- जल्दी स्कूल भेजने से बच्चे मानसिक रूप से तैयार नहीं होते।
- सही उम्र में दाखिला लेने से बच्चों में सीखने की क्षमता बेहतर होती है।
- बच्चों पर पढ़ाई का दबाव नहीं आता, जिससे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन भी बेहतर रहता है।
अब भारत भर के सभी स्कूलों में पहली कक्षा में एडमिशन के लिए 6 साल की न्यूनतम उम्र अनिवार्य होगी। यह कदम बच्चों के संपूर्ण विकास और शिक्षा की मजबूत नींव रखने के लिए बेहद जरूरी है। अभिभावकों को चाहिए कि वे नियमों को ध्यान में रखते हुए समय पर आवश्यक दस्तावेजों की तैयारी करें ताकि एडमिशन में कोई समस्या न आए।