Navratri : जैसा कि आप सभी जानते हैं की नवरात्रि हो और गरबा ना हो यह तो नामुमकिन है। गुजरात में नवरात्रि में गरबे का अलग ही तरह से आयोजन किया जाता है, जो की देखने में खूब शानदार लगता है। ऐसा ही एक गरबे का आयोजन जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, आज से करीब 94 साल पुराना है। तो चलिए जानते हैं इंदौर के इस 94 साल पुराने गरबे के इतिहास के इतिहास को।
पिछले 94 सालों से यहां खेला जा रहा है गरबा (Navratri)
इंदौर में नवरात्र उत्सव के दौरान गरबे का आरंभ सर्वप्रथम श्री गुजरात नवदुर्गा उत्सव मंडल के सदस्यों के द्वारा किया गया था। यहां गुजरात की परंपरा अनुसार गरबा नवरात्र उत्सव के आरंभ से ही शुरू हो जाता है। जो कि पिछले 94 वर्षों से मनाया जा रहा है।
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कब हुई थी इस मंडल की स्थापना
मंडल की स्थापना सन 1927 में हुई थी और सन 1927 से लेकर वर्तमान काल सन 2023 तक पिछले 94 वर्षों से इंदौर की लाल गली में इस गरबे का आयोजन किया जाता है। श्री गुजरात नवदुर्गा उत्सव मंडल के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश देसाई जी ने बताया कि पिछले 58 वर्षों सन 1927 से 1985 तक मंडल का स्वयं का निर्माता पूजनीय माता का मंदिर नहीं था और प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले नवरात्रि उत्सव हेतु स्थाई जमीन भी नहीं थी और माता जी का चौक भी नहीं था। शुरुआत में सन 1927 में महात्मा गांधी मार्ग पर बाटा शू कंपनी स्टोर के पास में गली में सार्वजनिक गरबा उत्सव होता था।
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मंदिर का कराया जमीन खरीदकर निर्माण
Navratri : उस समय जब कंपनी के स्टोर के पास वाली गली में सार्वजनिक गरबा उत्सव करवाया जाता था तो जगह छोटी लगने लगी, जिसके कारण जेल रोड पर स्थित सोनारवाड़ा में गरबे होने लगे। उसके बाद कई वर्षों तक सरदार आइसक्रीम के पीछे चौक में कार्यक्रम आयोजित किए गए।
लेकिन बाद में इस चौक की जमीन बिकने के कारण जगह नहीं बची थी, जिस कारण से लाल गली खातीपुरा में नवरात्रि का उत्सव मनाया जाने लगा। महाराजा कंपलेक्स के पीछे कोने में जो खाली जमीन पड़ी थी, उसे नगर निगम प्रशासन से नियम अनुसार मंडल के नाम पर वह जमीन खरीद कर, उस पर मंडल के सदस्यों के सहयोग से माताजी के मंदिर का निर्माण करवाया।
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निशुल्क सिखाए जा रहे हैं बच्चों को गरबे
छोटे बच्चों को गुजराती परंपरा अनुसार गरबे करने का बिना किसी शुल्क के प्रशिक्षण देने, गुजरात की लोक धुन में उसे गुजराती संगीत को लय बद्ध करने आदि कार्य पीढ़ी दर पीढ़ी यह लोग करते चल आ रहे हैं। इस समय तीसरी पीढ़ी इस कार्य को आगे बढ़ा रही है।
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