शबरी और भगवान राम: प्रेम, भक्ति और समर्पण की अद्भुत कथा
रामायण के सुंदर प्रसंगों में से एक अत्यंत हृदयस्पर्शी प्रसंग है — शबरी और भगवान राम का मिलन। यह प्रसंग हमें बताता है कि भगवान का प्रेम पाने के लिए रूप, जाति, धन या विद्वता नहीं, बल्कि सच्चा प्रेम और भक्ति चाहिए।
चौपाई
सरसिज लोचन बाहु बिसाला।
जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई।
सबरी परी चरन लपटाई॥४॥
भावार्थ
भगवान राम और लक्ष्मण कमल के समान सुंदर नेत्रों वाले,
लंबी-लंबी भुजाओं वाले,
सिर पर जटा मुकुट धारण किए,
और वक्ष पर बनमाला धारण किए हुए खड़े थे।
एक श्याम-वर्ण और एक गौर-वर्ण —
दोनों ही देव स्वरूप, कोमल और अत्यंत आकर्षक थे।
उन्हें देखते ही, शबरी भावविभोर होकर
रामचरणों से लिपट पड़ी —
मानो उनकी वर्षों की तपस्या और प्रतीक्षा पूर्ण हो गई।
शबरी की भक्ति का संदेश
शबरी सामाजिक दृष्टि से भले ही एक भील जनजातीय महिला थीं,
लेकिन उनका हृदय प्रेम, स्नेह और विनम्रता से भरा हुआ था।
उन्होंने वर्षों तक
एक-एक दिन, एक-एक पल भगवान राम के आने की प्रतीक्षा की।
और जैसा उनका प्रेम था,
भगवान स्वयं चलकर उनके आश्रम आए।
यह हमें सिखाता है—
“भगवान को पाने के लिए बाहरी सजावट नहीं,
हृदय की सच्चाई चाहिए।”
शबरी के बेर और भगवान की स्वीकृति
शबरी ने भगवान को
अपने तोड़े हुए बेर प्रेम से अर्पित किए।
यह बेर साधारण नहीं थे —
वे भक्ति, समर्पण और प्रेम का प्रसाद थे।
भगवान ने उन्हें हर्ष और प्रेम से स्वीकार किया।
क्योंकि भगवान रूप नहीं, भाव ग्रहण करते हैं।
हमारे जीवन के लिए संदेश
- भक्ति में स्वार्थ नहीं, प्रेम होना चाहिए
- भगवान तक पहुँचने का मार्ग सच्चे हृदय से है
- कोई भी बड़ा, छोटा नहीं — सब ईश्वर के बच्चे हैं
- जिसे प्रेम है, उसे भगवान स्वयं मिलने आते हैं
निष्कर्ष
यह भजन और चौपाई हमें याद दिलाते हैं कि भगवान का प्रेम समान है —
और जो सच्ची भक्ति करता है, भगवान उस तक स्वयं पहुँचते हैं।